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प्रिय साथियो,
दिल्ली विश्वविद्यालय के 'हंसराज कॉलेज' के विद्यार्थियों ने 'कैसे हों भावी सिविल सेवक' विषय पर बातचीत करने के लिये आमंत्रित किया था। मुझे लगा कि वही व्याख्यान इस चैनल पर अपलोड कर देता हूँ। इससे वीडिओज़ के बीच का अंतराल कम हो सकेगा।
दरअसल, किसी देश की शासन व्यवस्था को परखने का सबसे उपयुक्त तरीका है कि वहॉं की नौकरशाही की कार्यप्रणाली का मूल्यांकन कर लिया जाए। अगर नौकरशाही ठीक ढंग से कार्य करे तो देश उत्तरोत्तर प्रगति करता है और ऐसा न हो तो जनता को अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। लेकिन असली सवाल है कि आखिर वो कौनसी कसौटियॉं हैं, जिनसे यह तय हो कि नौकरशाही ठीक से कार्य कर रही है? और यह भी कि क्या यह कसौटी हमेशा से एक ही रही है या समय के साथ इसमें बदलाव आता गया है? इसके अलावा एक प्रश्न यह भी उठता है कि आकांक्षी भारत के लिये नौकरशाही का कौनसा स्वरूप बेहतर होगा? यही सब बिंदु इस बातचीत में शामिल हैं।
इस बातचीत में मैंने राजा के फरमान को पूरा करने से लेकर लोक कल्याण में भागीदारी तक के सिविल सेवाओं के सफर की चर्चा की है। साथ ही वर्तमान राष्ट्रीय अपेक्षाएँ किन गुणों से युक्त नौकरशाही चाहती हैं, इस पर भी विस्तार से बात की गई है। इसके अलावा बरास्ते मुक्तिबोध, तुलसीदास से लेकर अदम गोंडवी तक भारतीय साहित्य में शासन व्यवस्था के किस आदर्श रूप की कल्पना की गई है, इससे भी आपका परिचय हो सकेगा।
एक जागरूक नागरिक समाज के लिये यह आवश्यक ही है कि वो देश की नौकरशाही को समझे, इसमें रुचि ले ताकि इसका स्वरूप कल्याणकारी बना रहे। उम्मीद है कि इस उद्देश्य की पूर्ति में यह संवाद सहायक सिद्ध हो सकेगा।
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